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आजादी के दीवाने

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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आजादी का ये पावन क्षण,
तश्तरियों में सज नहीं आयी है,
रणबांकुरे रहे और भी,
सबने मिलजुल लड़ी लड़ाई है।
बांके चमार, मातादीन भंगी,
ये भी आजादी के दीवाने थे,
नाक में दम कर रखा
फिरंगियों के,ऐसे ये परवाने थे।
सिद्धू संथाल और गोची
मांझी,युद्ध कला में थे निपुण,
ताड़ पेड़ पर चढ़ तीर चलाये,
अंग्रेजों ने भी माना गुण।
नाहर खां और उदईया,
गोरों के थे कट्टर विरोधी,
फांसी पर चढ़ गया उदईया,
धूल थी माटी की सोंधी।
चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर को,
इतिहासकारों ने भूला दिया,
हुए कुर्बान देश की आन में,
गोली से जिन्हें मार उड़ा दिया।
झलकारी बाई के रण कौशल ने,
अंग्रेजों को हैरान किया,
हमशक्ल लक्ष्मी की थी वीरांगना,
नहीं कोई गुणगान किया।
उदादेवी पासी चिनहट युद्ध की,
बलिदानी नारी योद्धा थी,
छत्तीस गोरों को गोली से भूना,
आजादी की वो पुरोधा थी।
महावीरी बाल्मीकि के पास,
बाईस महिलाओं की टोली थी,
नाइंसाफी से नाखुश हो, अंग्रेजों
पर खुल के हमला बोली थी।
जोशीले भाषण रामपति के,
सिपाही ने जाति की गाली दी,
पुलिस पे हमला कर रूष्ट लोगों ने,
देशप्रेम की सलामी ली।
बलदेव कुरील और सूचित राम को,
पुलिस ने गोली मारा था,
नमक सत्याग्रह में कई दलितों संग,
आंदोलन का सहारा था।
मोहन कुरील ने चमार रेजीमेंट संग,
नेताजी का साथ दिया,
ब्रिटिश रेजीमेंट ने खुद को,
नेता की सेना में विलय किया।
अधिकारों के लिए लड़ना होगा,
जीना है जो तो मरना होगा,
भीम के संगठन के नारे पर,
हम सब को खरा उतरना होगा।
ऐसे योद्धा थे भारत के,जिसने
गोरों की जड़ हिला दिया,
पर देखो इतिहासकारों ने,
इन शूरवीरों को था भूला दिया।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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