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पृथ्वी बनी

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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पृथ्वी बनी, उस पर पर्वत बने
ताकि पृथ्वी लुप्त न हो जाए
फिर पर्वत पर पर्व बने
ताकि संस्कृति नष्ट न हो जाए।
मनु बने, शतरूपा बनी
ताकि सृष्टि रची जाए
सृष्टि पर फिर भाव बने
ताकि सृष्टि नष्ट न हो जाए।
भाव बने, ग्रंथ बने
ताकि संस्कृति बढ़ती जाए
संस्कृति से सब सभ्य बने
ताकि सृष्टि उन्नत हो जाए।
मानव ने फिर महल रचे
ताकि सभ्यता नष्ट न हो जाए
युगों-युगों तक बहे प्रेम की धारा
ताकि मनु की रचना बच जाए।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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