शैलेन्द्र चेलक
पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़)
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स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम,
वीरो के गुण गाये हम,
दासता मिटाने जान गवां दिए जो,
उन पर बलि – बलि जाएं हम,
स्वतंत्रता …
थी कभी सोने की चिड़िया,
सजी-धजी सी इक गुड़िया,
फूट डालकर फिरंगियों ने,
लगा दी दासता की बेड़ियां,
अब बेड़ियाँ तो टूट गए,
पर भाईचारा छूट गए?
आओ मिलजुलकर
अमन फैलाये हम,
स्वतंत्रता …
चुनौती हर दशक में नया-नया,
कभी गरीबी होती नही बयां,
कभी आधुनिकता के अंधे,
भ्रष्टाचार-घूसखोरी धंधे,
कुछ नेक बंदे हैं,
कुछ राजनीति वश गंदे है ,
गंदगी दूर भगाए हम,
स्वतंत्रता …
रोजगार की मारामारी है,
कहीं कालाबाजारी है,
किसान मजदूर हो चला,
उनकी विवशता लाचारी है,
नई सोच से सबके हित,
स्वरोजगार सृजाएँ हम,
स्वतंत्रता …
सीमा पर युद्व विराम नही,
सेना को आराम नही,
पड़ोसी नासमझ, न समझे तो,
चुप रहना काम नही,
सेना को और सबल बनाये हम,
दुश्मन को सबक सिखाये हम,
स्वतंत्रता …
अमन का दूत रहा भारत,
शांति अवधूत रहा भारत,
फैलाए जग में जो मानवता,
प्रेम मजबूत रहा भारत,
प्रेम बढ़ाकर, जग में छा जाएं हम,
स्वतंत्रता …
परिचय :– शैलेन्द्र चेलक
निवासी : पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़)
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