विवेक नीमा
देवास (मध्य प्रदेश)
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दो शतकों तक देश में रहकर
मिटा न पाए जिसकी हस्ती
भारत ही वह पुण्य धरा है
जन-जन के जो हृदय में बसती।।
लॉर्ड कैनिंग से जनरल डायर तक
लूट रहे थे सब धन को
पर तोड़ न पाया फिर भी कोई
देश प्रेम भरे मन को।।
सर्वस्व निछावर करने बैठे
माँ के थे वो सच्चे लाल
और झुका न पाया कोई फिरंगी
उनके गर्वित, उन्नत भाल।।
राजगुरु, सुखदेव, भगत और
लाल, बाल या पाल सभी
डटे रहे वो महासमर में
कि गौरव वसुधा का न घटे कभी।।
बहते लहू पर वतन की मिट्टी
जोश दिलों में जगा रही थी
देश प्रेम की ज्वाला मन में
आजादी का भाव जगा रही थी।।
जलियाँवाला बाग की घटना
रोक न पाई इंकलाब को
आँखों ने जो देख रखा था
स्वतंत्र देश के पुण्य ख्वाब को।।
आंदोलन की सतत आँधी ने
अंग्रेजों की नींव हिला दी
असहयोग और भारत छोड़ो ने
उनको नानी याद दिला दी।।
क्रांति का परचम लहराया
अंग्रेजी शासन घबराया
दो सदियों का यह संघर्ष
अब निर्णायक मोड़ पर आया।।
पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालिस
तिथि वो पावन इतिहास बनी
स्वतंत्र हो गया देश हमारा
मुक्त धरा का विश्वास बनी।।
वर्ष पचहत्तर बीत चुके हैं
आजादी के गर्वित पल के
भारत युवा राष्ट्र बन रहा
गौरव पथ पर नित चल के।।
फहराएँ तिरंगा अनंत व्योम में
जन गण मन से पाए हर्ष
अक्षुण्ण बनाए हम सब मिलकर
आजादी का यह अमृत वर्ष।।
निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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