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खपरैल में हीरे जड़े हैं

योगेश पंथी
भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
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मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़ें हें,
क्या बताऊँ वो मेरी महनत की कमाई से चढ़े हें !

दफ्तर में बैठकर हवा नहीं खाई साहब,
उनमें मेरे पसीने के कतरे पड़े हैं।

उनके बंगले की छत लाखों की हें मगर
मेरे घर के साये भी, मेरे लिये महंगे बड़े हैं।

आप भी क्या दे सकोगे आपके बच्चों को सु:ख
बरसात में तिरपाल लेकर सारी रात हम खड़े हें

महंगि बहुत हैं मेरे घर की, यह कच्ची जमीन
क्या कहूँ जिसमें मेरे अनगिनत आंसू पड़े हैं।

हौसलों से हैं खड़ी दीवारें मेरे घर की जनाब
बल्लियों पर चारों तरफ टाट के फट्टे चढ़े हैं।

किसी बड़े होटल से भी, महंगे निवाले हें मेरे
जिनको पाने के लिये, कीचड़ में मेरे कपड़े भिड़े हैं।

क्या मोल लगाओगे मेरे बच्चों की, एक मुस्कान का
ये आपकी दिखावटी मुस्कान से, बिल्कुल परे हैं।

मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़े हैं,
क्या बताऊँ वो मेरी मेहनत की कमाई से चढ़े हैं।

परिचय :- योगेश पंथी
निवासी : टीलाजमालपुरा भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से लेखन यात्रा प्रारंभ ….
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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