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यह कैसी है आजादी?

अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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नारी घर से निकल नहीं सकती,
शातिर भेड़िये ताक रहे।
उल्लू और चमगादड़, देकर
संदेश कोटर से झाँक रहे।।
सुख-चैन और नींद को छीनने,
गली-गली घूमते हैं पापी।
बेटियाँ सुरक्षित नहीं है
भारत में, यह कैसी है आजादी?

कोई दहेज के लिए प्रताड़ित होकर,
जल रही हैं आग में?
जुल्म और सितम को सहना,
लिखा है नारियों के भाग में।।
कम उम्र में ही कर दी जाती है
जोर-जबरदस्ती से शादी।
बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में,
यह कैसी है आजादी?

शराबी पति शेर बन दहाड़ रहे,
पत्नी को समझकर बकरी।
दुःख के पलड़े में झूल रही जिंदगी,
नरक की तौल-तखरी।।
व्याकुल मन की चीख-पुकार
अब खोल रही द्वार बर्बादी।
बेटियाँ सुरक्षित नहीं है
भारत में, यह कैसी है आजादी?

प्राचीन काल से ही गौरव नारी
हुई थी शोषण का शिकार।
अब दुर्गा बन कलयुगी दानव
महिषासुर का करो संहार।।
पढ़-लिख कर आत्मरक्षा के लिए
बननी होगी फौलादी।
जिस दिन बेटियाँ सुरक्षित रहेंगी,
उसी दिन मिलेगी आजादी।।

परिचय : अशोक कुमार यादव
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : सहायक शिक्षक
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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