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मुसाफिर

डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”
ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
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जो व्यक्ति कर
रहा होता है सफर।
उसे ही हम
कहते है मुसाफिर।
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इस दुनिया में हम
मुसाफिर है
मगर हमने यहां के
स्थायी निवासी की
गलत फहमी पाल ली है।
******
यदि अच्छा मिल जाता
हैं हमसफर
तो बहुत अच्छे से
कटता है
मुसाफिर का सफर।
******
अपने सफर को
खुशनुमा बनाये,
जब भी बने मुसाफिर
समान कम ले जाये।
******
मंजिल मिल जाने पर
पूरा हो जाता हैं सफर
फिर चलने वाला
नहीं होता मुसाफिर।
******
थक सा गया हूं
जिंदगी के सफर में,
अब मुझसे
मुसाफिरी नहीं होती ।
******
इस जिंदगी में
कभी खुशी कभी गम
आते है,
परंतु मुसाफिर
हर दौर में मुस्कुराते हैं।

परिचय : डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”
निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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