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नया काम नई शान

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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नए काम में नई शान से,
सभी उत्साह जगाते हैं
अक्ल मेहनत साथ इंडिया,
अच्छी दुकान चलाते हैं
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं

हंसते खेलते जो दिखते,
गलियों में चौराहों में,
अंतर्मन उनका घिरा रहे,
निहित अवसाद आहों में,
सेवा सृजन ऊर्जा उमंग,
अंतर्मन की चाहों में,
हंसते हुए ही जो मिलते,
अति व्यस्त ही पाते हैं
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं

रोजी दिहाड़ी मांगते वो,
सारे मजदूर परखिए
अक्सर काम लगाना चाहो,
रंग ढंग आप देखिए
गुजरबसर के साधन सारे,
ताकत में आय समझिए
छोटी बड़ी अपनी जरूरत,
सब पूरी कर जाते हैं
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं।

टीवी नोंक-झोंक सुन मानो,
मंहगाई भारी पड़ी
आसानी से सारी जनता,
मुकाबले में लड़ी खड़ी
अनेक मुफ्त योजनाओं से,
लाभ प्राप्ति की है घड़ी
मंहगाई मार से पीड़ित,
त्राहिमाम ही ढाते हैं
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं।
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं।

टीवी चैनल प्रवक्ता लोग,
विवाद का पैसा पाता।
ऊंचा-बड़ा नेता अच्छा भी,
पूरा खराब बतलाता।
सत्ताधारी कमी गिनवाए,
विकास कर्म नहीं भाता।
एजेंसी रैड में देख रहे,
द्वेष खूब फैलाते हैं।
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं।
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपवाते हैं।

व्यर्थ बोलने में अभ्यस्त,
सभी उसे वाचाल कहे
भड़काऊ बोल से विकराल,
दशा भूचाल हाल सहे
आपदा में अवसर खोजते,
मर्यादा तोड़ फोड़ रहे
ठेकेदार बन विरोधी जन,
जलवा ही चमकाते हैं
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं।
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं।

शब्दलोक सदा संसार का,
लोक व्यवहार का हिस्सा
बड़बोलापन लगता जैसे,
सुंदर होंठ काला मस्सा
व्यर्थ शब्दभाव की बोली,
अजीबो गरीब सा किस्सा
दुनिया में यश पाने खातिर,
कुछ हटकर ही गाते हैं।
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं।
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं।

संसद सभा में विवाद प्रेम,
बल से चुनाव जीतेंगे
विरोध स्वरूप जो संगठित,
भला देश का खोजेंगे
लोकतंत्र में मत देने फिर,
विकास विरोध तौलेंगे
मस्त चाल चलते हाथी तो,
घृणित घटिया पाते हैं।
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं

नए काम में नई शान से,
सभी उत्साह जगाते हैं
अक्ल मेहनत साथ इंडिया,
अच्छी दुकान चलाते हैं
पर शब्दों की जादूगरी से,
यश सम्मान भी पाते हैं
कहीं तकदीर वश घूरे से,
सोना भी उपजाते हैं।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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