विवेक नीमा
देवास (मध्य प्रदेश)
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हर घर में नारी अपने
ख्वाबों का आकाश चुने
पाने को अपनी हर मंजिल
अपना दृढ़ विश्वास बुने।
जीवन की हर खुशियों पर
उसको नित अधिकार मिले
बाबुल हो या आंगन प्रिय का
आदर और सम्मान मिले।
सूनी राहों पर बैठे गीदड़
चरित्र हीन तिनका भर हैं
जो दंभ भरे अपने पौरुष का
क्या सच में भी वो नर हैं?
कदम-कदम पर अबला को
लूट रहे जो अभिमानी
दुःशासन से दानव देखो
राह सरे करते मनमानी।
जन्मी बेटी है बोझ बढ़ेगा
ये सोच नहीं बर्बादी है
करते हैं जो गर्भ में हत्या
परिजन वे भी अपराधी हैं।
नारी से ही जन्मा नर है
भूल रहा क्यों ये सच्चाई
माँ, बहन, पत्नी और बेटी
संग रही बनकर परछाई।
उसे भी हक है पंख फैलाए
आसमान में उड़ने का
पाने को बेटों सा मान सदा
अपनों से भी लड़ने का।
दिल्ली हो या राहें मणिपुर की
खौफ न हो नारी के मन में
दहेज प्रताड़ना और उत्पीड़न
कभी न हो उसके दामन में।
नर नारी की समता की बातें
तब सच्ची हो जायेगी
सूनी राहों पर भी हर ना
जब नीडर होकर जायेगी।
निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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