अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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सबके जीवन के रक्षक हैं,
कान्हा मुरली वाले।
सदा बदलते धवल ज्योति में,
जीवन के दिन काले।
बीच भँवर में डोल रही है,
हम भक्तों की नैया।
तुम ही मेरे जीवन रक्षक,
तुम ही नाव खिवैया।
जीवन डोर हाथ है प्रभु के,
प्रभु जी सदा बचाते।
हम प्रभु जी की कठपुतली हैं,
प्रभु जी हमें नचाते।
भक्तों की जीवन नैया को,
खेते स्वयं विधाता।
भक्तों की रक्षा करने को,
खुद रक्षक बन जाता।
गज अरु ग्राह लड़े जल भीतर,
अंत समय गज हारा।
गज की रक्षा करने के हित,
श्रीहरि बने सहारा।
बन जाते हरि सबके रक्षक,
करते सदा सुरक्षा।
अपने भक्तों के जीवन की,
हर पल करते रक्षा।
रक्षक बनकर लखन लाल ने,
चौदह बरस बिताए।
मार दशानन, सिया सहित प्रभु,
लौट अवधपुर आए।
रक्षक बने, विभीषण के प्रभु,
अपना दास बनाया।
आया शरण विभीषण प्रभु की,
लंकापति कहलाया।
हम भी रक्षक बने सभी के,
सब के बनें सहारे।
भवसागर से पार लगा दें,
श्याम मुरलिया वारे।
रक्षक बनकर जो औरों की,
करता जीवन रक्षा।
रक्षक वन, श्रीहरि करते हैं,
उसकी सदा सुरक्षा।
परिचय :– अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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