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बेड़ियां

अंजली शर्मा
दमोह, जबलपुर, (मध्य प्रदेश)
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सच की राह चल सको
तो अब मुकरना मत
जो आए तुम्हे रोकने
तुम रुकना मत

कुछ कहेंगे अपशब्द,
कुछ कहेंगे बुरा भी तुम्हे
सादर शीष झुकाना,
बाते उनकी सुनना मत
जो आए तुम्हे रोकने
तुम रुकना मत

और पैरो में पड़ी बेड़ियां,
जो तुमने अब तोड़ी है
खुद को संवार कर
झूठी राह छोड़ी है
ना दबना गलत बात पर,
गलत पैरो में गिरना मत
जो आए तुम्हे रोकने
तुम रुकना मत

और जो आए तुम्हे खींचने,
बांह तुम्हारी मरोड़ने
हिंसा, जख्म और जख्मी
दिल को कचोड़ने
रोक देना हाथ वही,
दिल अपना पसीजना मत
जो आए तुम्हे रोकने
तुम रुकना मत

टूटी आशा आंखे सूजी,
माथे पे जख्म हरे हरे
चोट के निशान कई,
नैना अश्रु भरे भरे
सहन की सीमा
खत्म हो चली,
दशा ये अपनी
करना मत
जो आए तुम्हे रोकने
तुम रुकना मत

परिचय :- अंजली शर्मा
निवासी : दमोह नाका जबलपुर, (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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