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हमारा भी जमाना था

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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पीढ़ी देखे चरम बदलाव,
चिंता बिन अफसाना था।
भला=बुरा का ज्ञान नहीं पर,
हमारा भी जमाना था।

बिन शर्म संकोच बचपन में,
पैदल साइकल जो हुआ।
दूर_पास विचार नहीं संग,
मां पिता गुरु ईश दुआ।

चला करते पीढ़ी के रिश्ते,
चाचा मामा बहन बुआ।
ढपोरशंख पदवी से दूर,
प्रतिशत उच्च अंक छुआ।

बगैर संकोच पुस्तक शॉप,
क्रय विक्रय ठिकाना था।
परिवार सहयोग में कितनी,
लाइन भी लग जाना था।

अपनी पीढ़ी चरम बदलाव,
बिन चिंता अफसाना था।
भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर,
हमारा भी जमाना था।

प्रभु प्रलोभन मिठाई का,
कम मेहनत विनय करते।
पढ़ाई खर्च का बोझ वहन,
कभी उजागर ना करते।

सिलवटी ड्रेस सस्ते खेल से,
जमकर खुशियां पा लेते।
कंचा भौंरा पिट्टुल कौंडी,
लूडो चेस चला करते।

जरा सी पॉकेट मनी बचे,
अन्य शौक भी पाना था।
घर का मुरमुरा चूड़ा भेल,
अपना शौक पुराना था।

अपनी पीढ़ी चरम बदलाव,
बिन चिंता अफसाना था।
भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर,
हमारा भी जमाना था।

उस यात्रा से इस पड़ाव में,
कितने ही बदलाव मिले।
अनजाने ही समन्वय हेतु,
हृष्ट-पुष्ट संघर्ष मिले।

सज्जित स्नेह की थाली से,
हम संतुष्टि मार्ग ढले।
कागज की नाव जहाज और,
टॉर्च बनकर कार चले।

घर शाला की डांट मार से,
खुद को बहुत बचाना था।
यथा संभव प्रस्तुति सुंदर,
खुद को ही जितवाना था।

अपनी पीढ़ी चरम बदलाव,
बिन चिंता अफसाना था।
भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर,
हमारा भी जमाना था।

सीमित साधन उपरांत आज,
पूर्ण सुविधाएं मिलती।
वक्त की भारी कमी कारण,
रिश्तों में खलबली मचती।

अकाल ग्रस्त संस्कार रहें,
पर बाहुबली कहलाते।
सनातन विरोध दिखाने में,
प्रबल आतुरता पाते।

रामचरित मानस बचपन से,
धर्म आस्था जगाना था।
युद्ध कगार पर खड़ा दिखता,
संस्कारी नजराना था।

अपनी पीढ़ी चरम बदलाव,
बिन चिंता अफसाना था।
भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर,
हमारा भी जमाना था।

गरीब लाचार कथाओं को,
ध्यानपूर्वक मनन करो।
प्रमुख पदों के शासन कर्ता,
महान पुरखे याद करो।

पीढ़ी का अंतर भी परखो,
जीवन जिल्लत में गुजरा।
देश विश्व की जान निछावर,
जिनसे सजा था सेहरा।

तब परम उद्देश्य देश जीत,
अब हर बात हराना था।
हे नई पीढ़ी! ध्वस्त करो,
गलत जिसका निशाना था।

अपनी पीढ़ी चरम बदलाव,
बिन चिंता अफसाना था।
भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर,
हमारा भी जमाना था।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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