सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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१५ नवंबर २०२२ का दिन, जब हमारे प्रिय आ. आर.के. तिवारी मतंग जी सपत्नीक हमारे बस्ती प्रवास स्थल पर गोरखपुर से लौटते हुए मेरा कुशल क्षेम लेने आये, आपसी बातचीत और संवाद के बीच ही मई जून २३ में अयोध्या में एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं पुस्तक विमोचन आयोजन कराने की इच्छा व्यक्त की, तभी तत्काल इस बारे में मतंग जी से प्रारंभिक तौर पर आयोजन के संबंध में हमारी मंत्रणा, वार्ता का श्री गणेश हो गया था, और निरंतर आभासी संवाद के माध्यम से हम दोनों निरंतर आयोजन की रुपरेखा को अंतिम रूप देने में सफल हो, जिसका परिणाम आप सभी के सामने “मतंग के राम” आ.भा. कवि सम्मेलन, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह के रूप में जनमानस के बीच साकार रूप में सामने आया। जिसके प्रत्यक्ष गवाह आप सभी की एक छत के नीचे एक साथ एकत्र होकर बन चुके हैं। ये निश्चित ही प्रभु श्रीराम जी की अधिकतम कृपा से ही फलीभूत हो पाया।
साथ ही अपनी साहित्यिक गतिविधियों में बढ़ती संलिप्तता और विकास का श्रेय भी उन्होंने जब मुझे दिया तो मैं आश्चर्य चकित रह गया, क्योंकि मेरा मानना है कि उनके समर्पण के साथ उनकी सरलता और सहजता उनके लिए सुगम मार्ग प्रशस्त कर रही है। ये उनके बड़े व्यक्तिव का संकेत था जो आज हम सब के बीच में यथार्थ रूप में सामने है। तब से लेकर आयोजन के समापन तक हमारा आयोजन के हर पहलू पर संवाद निरंतर बना रहे, मेरे विचारों, सुझावों को उन्होंने हमेशा महत्व दिया और आयोजन की तैयारी के हर छोटे बड़े पहलू पर हम आपसी संवाद के माध्यम से अंतिम रूप देने का प्रयास करते रहे।
जैसा कि सबको विदित है कि स्वास्थ्य कारणों से कहीं आना जाना मेरे लिए दुष्कर था और अभी भी है, बावजूद इसके मतंग जी ने कभी भी इसकी परवाह नहीं की और सदैव मुझे अग्रज की भूमिका में ही रखा, ये निजी तौर पर मेरे लिए गर्व की बात है।
जैसे जैसे आयोजन की तिथि निकट आ रही थी, मेरी धड़कनें तेज हो रही थी क्योंकि स्वास्थ्य इस बात की इजाजत देने को जैसे तैयार ही नहीं था, उस पर मतंग जी का मेरी निश्चित उपस्थित का आग्रह मुझे चिंतित कर रहा। मैं आयोजन में अपनी उपस्थिति की तीव्र उत्कंठा के बीच खुद ही आश्वस्त नहीं हो पा रहा था। इस बीच प्रिय अनुज राजीव रंजन मिश्र से मैंने अपनी बात रखी और साथ ही आग्रह भी किया कि यदि वो चलें तो मुझे भी अपने साथ ले चलें, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर मेरी दुविधा को लगभग खत्म कर, उस पर मतंग जी और राजीव रंजन मिश्र जी के आपसी बातचीत ने इस पर पक्की मुहर लगा दी। शायद प्रभु श्रीराम जी भी अब मेरी उपस्थिति को लेकर अपनी भूमिका में उठकर खड़े हो गए थे।
लेकिन २६ मई ‘२०२३ की रात्रि में मेरा स्वास्थ्य उदंडता करने लगा और जीवन में पहली बार मेरे मन में नकारात्मकता का भाव हिचकोले खाने लगा। बिस्तर पर लगभग बेसुध अवस्था में मुझे ऐसा लग रहा था कि संभवत: मेरे जीवन में २७ मई’ २०२३ की सुबह नहीं होगी, लेकिन कहते हैं कि “राम की माया राम ही जाने”। एक पल के मुझे ऐसा महसूस हुआ कि रामजी मुझे आश्वस्त कर रहे हैं। खैर जैसे तैसे सुबह भी हो गई और मैं तेजी से सामान्य होता गया, लेकिन शाम को थोड़ी असुविधा जरुर महसूस हुई, लेकिन तब मैंने खुद को लगभग आश्वस्त करने में सफल भी हो गया था, बस पक्का यकीन नहीं कर पा रहा था। तब मैंने राजीव भाई से बात की, उन्होंने मेरी हौसला अफजाई की और संपूर्ण विश्वास के साथ कहा सब ठीक रहेगा, हम सब लोग साथ चलेंगे।
और अंततः २८ मई ‘२०२३ की सुबह जैसे रामजी की कृपा का प्रभाव था कि मैं खुद यकीन कर पा रहा था कि मैं निश्चित जा पाऊंगा। क्योंकि मेरा स्वास्थ्य अपनी सुविधा देखकर कब रंग में आ जायेगा, ये पता नहीं है। और फिर क्या था राजीव रंजन मिश्र जी प्रेमलता रसबिंदू दीदी के साथ सीधे घर आ गये। फिर हम सभी एक साथ अयोध्या के लिए प्रस्थान किए तब जाकर मैं पूरी तरह निश्चिंत हुआ कि अब तो पहुंच ही जाऊंगा। हमारी धर्म पत्नी भी साथ थीं, थोड़े असमंजस में भी। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि अब सब ठीक होगा।
रास्ते भर आयोजन में शामिल अनेक लोगों के फोन मेरे कब तक पहुंचने की जानकारी के लिए आते रहे, मैं उन्हें जानकारी देकर आश्वस्त करता रहा और अंततः आयोजन स्थल पर हम सभी पहुंच गये।
फिर तो जो हुआ उसका शाब्दिक वर्णन संभव नहीं है। हर किसी ने मेरे आगमन को पारिवारिक सदस्य के लंबे अर्से बाद घर वापसी के रूप में लिया, हर कदम पर मेरा ध्यान रखा, जो लोग मुझे आभासी दुनिया में भी करीब से जानते थे, उन सबकी ख़ुशी उनकी आत्मीयता मेरे लिए किसी पूंजी से कम नहीं है। पिता/अग्रज तुल्य वरिष्ठों, अनुजों, दीदियों, नटखट छोटी लाड़ली बहनों ने अधिकार भरे अपनत्व, प्यार दुलार, मान सम्मान और आत्मीयता की नयी परिभाषा गढ़ दी। प्रिय मतंग जी का स्नेह विश्वास, मान, अपनत्व और खुशी का वर्णन मैं कैसे करूं, समझ में नहीं आता। अपने वरिष्ठों अग्रजों/बड़ी बहनों की तारीफ करके मैं उन सबके अपनत्व, स्नेह, मार्गदर्शन और लगातार मिल रहे संबल, प्रोत्साहन को शब्दों में समेटने का दुस्साहस नहीं कर सकता। क्योंकि इन सबसे मुझे जो मिलता है वो असीम, अशेष है। जो हर किसी को नहीं मिल सकता। हां छोटी बहनों की खुशी और उनके भातृत्व भावों को आत्मसात करते हुए आंखें जरूर नम हो गईं, मैं सोच भी नहीं पा रहा हूं कि आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया में आने पर भी इन सभी का स्नेह भाव, अपनत्व, विश्वास मुझ पर इस कदर बरसेगा कि मैं तरबतर हो जाऊंगा।
अनेक नये लोगों से मुलाकात भी अनूठी खुशी देने वाला रहा।
इतना भव्य और इतने लंबे समय तक चलने वाला आयोजन पूरे समय सुचारू सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न हुआ। सौ से अधिक कवियों कवयित्रियों के काव्य पाठ, पुस्तक विमोचन, अतिथियों का लगातार आवागमन और सुविधा सहजता के साथ सभी का यथोचित सम्मान के साथ जलपान, भोजन की व्यवस्था के साथ सहजता से सभी तक उपलब्धता अवर्णनीय है।
आयोजन की विशेष उपलब्धियां भी रहीं कि कई नये कवियों कवयित्रियों को पहली बार में ही इतने बड़े मंच पर और इतने ज्येष्ठ श्रेष्ठ लोगों की उपस्थिति में काव्य पाठ का अवसर मिला। उनकी खुशी आज भी उनके साथ आभासी संवाद में कुलांचे भरती महसूस होती है। जिसमें कई मेरे माध्यम से भी अपने पहले मंचीय काव्य पाठ के गौरवशाली अहसास का बखान कर रहे हैं।
ऐसे तो आयोजन में अधिसंख्य से आभासी भेंट, संवाद और रिश्ता रहा, परंतु पहली बार एक साथ देख के विभिन्न भागों से पधारे कवियों कवयित्रियों से आमने सामने मुलाकात का अवसर मिला, लेकिन हर से किसी से भी मिलकर जैसे पहले हम कितनी ही बार पहले भी मिले होने की अनुभूति हो रही थी।
मेरे स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए हर किसी का यथा संभव मेरे पास आकर मिलने का भाव मंत्रमुग्ध कर गया। मैं आयोजन में शामिल हर एक ज्येष्ठ श्रेष्ठ कवियों कवयित्रियों, अतिथियों का चरण स्पर्श करता हूं, हम उम्र को नमस्कार प्रणाम करता हूं, अनुजों को स्नेह दुलार आशीर्वाद देता हूं, साथ आयोजन में शामिल सभी मातृशक्तियों और बड़ी छोटी बहनों के चरणों में शीश झुकाता हूं।
प्रभु श्रीराम जी की सूक्ष्म उपस्थित में उनके चरणों में समर्पित सभी की सौ से अधिक रामभक्त कवियों कवयित्रियों की प्रस्तुतियों से आयोजन स्थल का वातावरण राममय सा रहा। निश्चित रुप से प्रभु राम जी की कृपा करुणा हम सबको एक छत के नीचे इतने समर्थक अनवरत प्राप्त होना बड़ा सौभाग्य रहा। आयोजन का हिस्सा बने सभी अतिथियों, कवियों कवयित्रियों को रामनामी के साथ “श्रीराम भक्त सम्मान” के साथ राम दरबार का मोहक चित्र देकर सम्मानित किया गया। जय श्री राम जय जय श्री राम की गूंज से आयोजन स्थल पूरे समय गुंजायमान होता रहा।
हम सभी के दृष्टिकोण से ये विशिष्ट आयोजन था, जो प्रातः नौ बजे से प्रारंभ होकर रात्रि के लगभग नौ बजे तक अर्थात करीब बारह घंटे बड़े उत्साह से चलता रहा।
किसी का नाम न लेने की मेरी विवशता है क्योंकि सबके नाम लेकर कुछ कह पाना संभव नहीं है। फिर भी गुस्ताखी कर रहा हूं। वैसे तो हर किसी ने मुझे सहेजा समेटा, दुलारा, प्यार, मान सम्मान दिया मगर इन सबके बीच आ. संतोष श्रीवास्तव विद्यार्थी दादा (सागर,म.प्र.) ने आभासी दुनिया में अग्रज की भूमिका से आगे बढ़कर वास्तविक दुनिया में एक पिता की तरह मेरा अधिकांश समय ध्यान रखा, सहेजने में पूर्ण सजग रहे, पद्मश्री डा. विद्या बिंदू सिंह जी ने व्यक्तिगत रुप से मेरा हाल चाल पूछकर मुझे प्रफुल्लित कर दिया। साथ ही छोटी बहनों ने भी अपने अधिकारों का खुलकर लाभ उठाया और शिकायतों के साथ नसीहतों का पिटारा खोल कर बौछार के मौके का भरपूर लाभ उठाया।
अंत में प्रभु श्रीराम जी की कृपा, प्रिय अनुज आ. आर के तिवारी मतंग जी और उनकी धर्मपत्नी के स्नेह भाव के प्रति नतमस्तक हूं जिन्होंने निश्चित उपस्थिति की एक तरह से जिद करके मुझे उपस्थिति होने के लिए विवश कर दिया, साथ ही प्रिय अनुज राजीव रंजन मिश्र जी ने लक्ष्मण की भूमिका बखूबी अदा की, जिसके फलस्वरूप मैं आप सभी के दर्शनों का पात्र बन सका। मैं प्रभु श्रीराम जी के चरणों में शीश झुकाते हुए भाई मतंग जी और राजीव जी प्रति स्नेह आभार प्रकट करता हूं।
“कल किसने देखा है” के आधार पर अगर मैं कहूं कि “मतंग के राम” आयोजन का हिस्सा बनकर एक साथ इतने बड़े समूह में देश के विभिन्न भागों से पधारे आप लोगों से मिलना, बातचीत करना, एक दूसरे को सुनना सुनाना, नव आत्मीय रिश्तों का जुड़ना अद्भुत ही नहीं, अविस्मरणीय अहसास भी है। ये मेरी सर्वश्रेष्ठ स्मृतियों में एक है। जो जीवन भर मुझे सुखद अनुभूति से अलंकृत करता रहेगा।
आयोजन में शामिल होकर व्यवस्था में लगे एक एक व्यक्ति को आभार धन्यवाद देने के साथ प्रणाम करता हूं क्योंकि कि आप सभी के सहयोग के बिना इतना सुन्दर और सुव्यवस्थित आयोजन संभव ही नहीं था।
मेरे व्यवहार, विचार या कृत्य से जाने अंजाने यदि किसी को किसी भी तरह से ठेस पहुंचा हो तो बिना किसी भूमिका के मैं हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थी हूं।
आप सभी के सुखमय और उत्कृष्ट साहित्यिक जीवन की कामना के साथ उम्मीद करता हूं कि हम सभी पुनः एक साथ, एक मंच पर जरुर होंगे।
परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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