प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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“क्या हुआ?”
“लक्ष्मी आई है।”
“खाक लक्ष्मी आई है।तीसरी बार भी लड़की ही।” और, सासू मां ने अनीता को वहीं अस्पताल में ही कोसना शुरु कर दिया। शोर शराबा सुनकर अनीता का ऑपरेशन करके उसके बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर बाहर आई और सासू माँ पर गुर्राते हुए बोली-
“माँ जी! क्या आप नहीं जानतीं, कि बच्चे को पहले नौ माह पेट में रखना, फिर जन्म देना, वह भी ऑपरेशन से, कितना कठिन होता है? आपने पोते की चाहत में अपनी बहू को तीसरी बार ख़तरे में डाल दिया। आज का ऑपरेशन तो बहुत ही जटिल था, और बड़ी मुश्किल से अनीता की जान बची है। वैसे तो हर बार ही बच्चे को जन्म देना माँ के लिए पुनर्जन्म होता है, पर आप यह समझिए कि आज तो आपकी बहू मौत के दरवाजे से ही वापस लौटी है। और-आप संतोष का अनुभव करने की जगह उसे कोस रही हैं। लानत है आप पर। इतने विषैले बोल इतनी कटु वाणी, आख़िर बहू का दोष ही क्या है? उसने एक बेटी को जन्म दिया है, तो बेटी-बेटे से किसी भी तरह से कम है क्या? मां जी अपनी कटुवाणी और रुग्ण मानसिकता का त्याग कर दीजिए, नहीं तो आगे जाकर आप बिलकुल” अकेली रह जाएंगी।”
इस पर सासू मां निरुत्तरित थीं…
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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