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सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का

नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार म.प्र.
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मिली जितनी कभी सोची नहीं थी।
हमारी ख़्वाईशें इतनी नहीं थी।

न कर पायी असर हमपर कभी वो,
कही जिस बात में तल्ख़ी नहीं थी।

सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का,
रिवायत आपकी वैसी नहीं थी।

फ़िक्र रखती तो जाकर लौट आती,
हवा थी वो कोई कश्ती नहीं थी।

मिली तो मिल गई जब उसने चाहा,
ख़ुशी हालात से रूठी नहीं थी।

किसी का नाम लेकर भूल जाना,
ये आदत आपकी अच्छी नहीं थी।

परिचय :- नवीन माथुर पंचोली
निवास : अमझेरा धार म.प्र.
सम्प्रति : शिक्षक
प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित।
सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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