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नशा मुक्त हो जीवन सबका

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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दिखावे का युग आज है,
बनावट ओढ़े सर पे ताज है,
राजस्व की फिकर सत्ता को
मय मदिरा घर-घर में आज है,
लगा हुआ है ध्यान ये सबका,
झूम रहा हर वंचित तबका,
खोज रहा हर कोई कृपा ये रब का,
तन मन धन बर्बाद है इससे,
नहीं आता बाहर कोई इस सनक से,
हर कोई दुखी हैं नशे की धमक से,
यारों इस नशे को अब तो छोड़ो,
कीमत चुकाये हैं नशे की सबब का,
नशा मुक्त हो जीवन सबका,
अब बात करें उस नशे की
जो जीवन में बहुत जरुरी है,
करलो समाजोत्थान का नशा,
मिशन के गुणगान का नशा,
जागृति अभियान का नशा,
हर जीवन के सम्मान का नशा,
मत भूलो इस नशे से
भीमराव, फुले, पेरियार भी झूमे थे,
जनजागरण के इस नशे के लिए
बुद्ध, कबीर, गाडगे भी घर घर घूमे थे,
तो छोड़ो नशा मद्यपान का,
कुछ तो सोचो अपने सम्मान का।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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