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बापूजी

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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बदल लिया है चोला सब ने,
बदल गए ढब बापूजी।
दिखा रहे दल झूठे सारे,
अपने करतब बापूजी।।१

बुरा न बोलो, सुनो, न देखो,
बदली सबकी परिभाषा,
इन राहों पर चलता कोई,
दिखा नहीं अब बापूजी।।२

सत्य अहिंसा दया प्रेम के,
अर्थ हुए सब बेमानी,
स्वार्थ साधना में रम जाना,
सबका मतलब बापूजी।।३

सम्मानों के ओढ़ दुशालें,
कलमें भूली बल अपना,
शर्मिंदा है नजरें उनकी,
बंद पड़े लब बापूजी।।४

चाहा तुमने यहाँ रोपना,
भाईचारे के उपवन,
भेदभाव के उग आए पर,
सारे मजहब बापूजी।।५

टाँग खींचना और गिराना,
फिर चढ़ना है ऊपर को,
ताड़ रही नजरें सबकी,
ऊँचे मनसब बापूजी।।६

आड़ तुम्हारे तस्वीरों की,
कब तक इन्हें बचाएगी।
तुम्हें बनाने लगे हुए जो,
अपना ही रब बापूजी।।७

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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