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काश ऐसा फिर हो जाए

दीप्ता नीमा
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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खेल के मैदान में धरती माँ को चूम जाएं
और हम बच्चे बन फिर बहुत धूम मचाएं
उम्र के इस पड़ाव से कच्ची उम्र में लौट जाएं
समय की चकरी फिर उल्टी घूम जाए
काश ऐसा फिर हो जाए ।।१।।

नीला आकाश देखकर मैं खो जाऊँ
टिमटिम करते तारों की गिनती लगाऊं
चाँद में सूत कातती अम्मा को निहारूं
समय की चकरी को फिर उल्टा घूमाऊं
काश ऐसा मैं कुछ कर जाऊँ ।।२।।

वो बाग में तितलियों के पीछे दौड़ना
वो चोरी से पड़ोसियों के फल तोड़ना
वो मिटटी की गुल्लक में पैसे जोड़ना
समय की चकरी का मेरा उस ओर मोड़ना
काश ऐसा फिर हो जाए ।।३।।

माँ के आँचल को पकड़कर के चलना
गिरना संभलना फिर उठकर के चलना
माँ की थपकियाँ संग माँ का वो पलना
समय की चकरी का काश फिर यूँ ढलना
काश ऐसा फिर हो जाए।।४।।

काश मैं फिर वैसे पलकें झपकांऊ
बचपन के जैसे झूमूं और गाऊं
जरा सी रूठूं और फ़िर मान जाऊँ
समय की चकरी को फिर उल्टा घूमाऊं
काश ऐसा मैं कुछ कर जाऊँ ।।५।।

परिचय :- दीप्ता नीमा
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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