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रब होती हैं बेटियाँ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ‘राज’
बागबाहरा (छत्तीसगढ़)

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लक्ष्मी, सरस्वती, सीता और दुर्गा हैं बेटियाँ
रोको मत लोगों संसार में आने दो बेटियाँ
माता-पिता परिवार की गर्व होती हैं बेटियाँ
घर आंगन ही नही रब की रौनक होती हैं बेटियाँ

नाजुक दिल, बड़ी मासूम होती हैं बेटियाँ
खुशी से खुशियों में भी रो पड़ती हैं बेटियाँ
पतझड़ में भी बसन्त जैसी होती हैं बेटियाँ
रोम रोम रो पड़ती हैं जब दूर जाती हैं बेटियाँ

तितली की तरह आकाश में उड़ती हैं बेटियाँ
सुने मकान को भी मंदिर बनाती हैं बेटियाँ
जीवन के हर कष्ट में सम्बल देती हैं बेटियाँ
साहस की प्रचण्ड प्रतिरूप होती हैं बेटियाँ

सरस्वती बन खूब पढ़ती लिखती हैं बेटियाँ
दुर्गा बनकर साहस शक्ति देती है बेटियाँ
लक्ष्मी बनकर वैभव प्रदान करती हैं बेटियाँ
माता जैसी अंतरिक्ष में ध्वज लहराती बेटियाँ

अठखेलियाँ करती मल्हार गाती हैं बेटियाँ
संसार को सूरज की तरह रोशन करती हैं बेटियाँ
तो कभी पद्मिनी, रानी, दुर्गा कर्मवती हैं बेटियाँ
दीप्ति, तृप्ति, गायत्री और प्रीति होती हैं बेटियाँ

साक्षी, सायना, उषा, मेरी कॉम होती हैं बेटियाँ
कर्णम्मलेश्वरी, सिंधू चानू जैसी होती हैं बेटियाँ
कल्पना, सुनीता, सिरिसा बन परचम लहराती बेटियाँ
पिता का गर्व और आंखों का सितारा हैं बेटियाँ

प्यार विहीन बंजर धरती की हरियाली हैं बेटियाँ
बागों में बागन में कलियों में फूलों सी हैं बेटियाँ
कलकल छलछल बहती हुई झरनों सी हैं बेटियाँ
आने दो उसे रब में क्योंकि वो रब होती हैं बेटियाँ

परिचय :-  राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ‘राज’
निवासी : बागबाहरा (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बागबाहरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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