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मन की पीड़ा

मनोरमा जोशी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मन की पीड़ा समझ,
न पाये दुनियाँ सारी।
सिमट गये है उज्वल रिशतें,
भूल गये इमानदारी।
रिशतों की छनकार मे,
रहीं नहीं आवाज,
ईष्या कपट द्धेश का,
हो चुका आगाज।
सच्चे अर्थों मे देखें,
सबंधों मे प्यार नहीं,
कार्यवाही के प्यार में
कार्य से अब प्यार नहीं।
सामाजिक प्राणी मनुज,
सामाजिक सब जीव,
उठ जाये यह भाव तो,
हिले सृष्टि की नींव।
यह प्रकृति का नियम हैं,
यहीं जगत का रंग,
जीवन मानव का कभी,
होता नहीं निसंग।
एक भ्रम कोरा प्रदर्शन,
आस्थायें बची कहाँ,
अब किसी के मध्य,
निर्मल भावनाएँ है कहाँ।
प्यार के दो बोल से,
हो जाता जीवन सफल,
इतना हर्दय विचार ले,
सबंध होगे निकट मधुर।

परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है।
शिक्षा – स्नातकोत्तर और संगीत है।
कार्यक्षेत्र – सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्धि संगीत शिक्षक, मालवी नाटक में अभिनय और समाजसेवा करना है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी का प्रचार-प्रसार और जन कल्याण है। कार्यक्षेत्र इंदौर शहर है। आप सामाजिक क्षेत्र में विविध गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) व एक काव्य संग्रह में प्रकाशित हुई है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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