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हँसते जख्म

सोनल सिंह “सोनू”
कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)

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मन के जख्मों पे
मरहम कौन लगाए,
हर शख्स जख्मों को
बस कुरेदना चाहे।
जख्मों की नुमाइशें
बेकार हैं,
छल कपट का फैला
कारोबार है।

अपनों ने जो दिए
वो जख्म गहरे हैं,
ख्वाहिशों पर लगाये
सबने पहरे हैं।
दर्द के पीछे छिपे
बेनकाब चहरे हैं,
दर्द मिला बेहिसाब,
घाव गहरे हैं।

अपनों की बेरूखी
बड़ा दुख पहुँचाती है,
पर इससे ज़िंदगी
थम तो नहीं जाती है।
दूना उत्साह
बटोरना होता है,
कुछ भी हो काम पर
लौटना होता है।

हमदर्द मिले न मिले,
खुद को समझाना होगा,
हर जख्म सहकर,
मुस्कुराना होगा।
आज मिली हो मात कल
जीतकर दिखलाना होगा।
कोई साथ दे न दे,
हमें चलते जाना होगा।

परिचय – सोनल सिंह “सोनू”
निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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