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मन का भोजन ज्ञान है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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जो स्थान सुनिश्चित रहकर,
पुस्तक संधारण करते।
जिनसे जीवन बनता सुखमय,
उन्हें पुस्तकालय कहते।

वेद पुराण, उपनिषद इन में,
रामचरितमानस गीता।
ज्ञान पिपासु, इन्हीं में जाकर,
ज्ञान जिंदगी का पीता।

रघुवंशम औ मेघदूत भी,
रामायण से पावन हैं।
ज्ञान पुंज पुस्तक भंडारण,
सुखद और मनभावन हैं।

सबका ही जीवन हीरा है,
पर तरासना होता है।
बिना तराशा हीरा भी तो,
अपनी कीमत खोता है।

होता सदा सीप के भीतर,
बहुत कीमती- सा मोती।
मानव जीवन की सीपी में,
भरी किताबें ही होती।

सभी पुस्तकें, सच्ची साथी,
जीवन को महकाती।
सुसंस्कृत जीवन होता है,
हर मानव की थाती।

प्रज्ञा वान बने हर मानव,
पुस्तक विद्या देती है।
मिले खाद पानी पौधों को,
पुष्पित होती खेती है।

मन का भोजन सिर्फ ज्ञान है,
जो किताब से मिलता है।
ज्ञानवान, गुणवान व्यक्ति ही,
सदा कमल-सा खिलता है।

जितना सागर में पानी है,
उतना ज्ञान समाया है।
जितनी करी पात्रता अर्जित,
बस उतना ही पाया है।

पुस्तक युक्त पुस्तकालय को,
हम सब भी मंदिर माने।
वेद ऋचायें, चौपाई सँग,
गूंजेंगीं ज्ञान अजानें।

इनकी कीमत, धन से ज्यादा,
इनसे ही धन आता है।
मान सदा मिलता शिक्षित को,
बिना पढ़ा पछताता है।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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