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विषधर-सा मौसम

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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फन काढ़े विषधर-सा मौसम, सीने पर डोले।
कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।

प्यासा सावन मरा माँगते, चुल्लू भर पानी।
नाच रही फागुन के आँगन, अब बरखारानी।
खलिहानों के दुखिया उर पर, काले बदरा ने,
तूफानों की गारत लाकर, कर ली मनमानी।।

बिना सूचना के दागे हैं, दुखड़ों के गोले।
कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।१

पटवारी के अक्खड़पन में, खेती रोज मरी।
घर पटेल के बैठ खाट पर, गिरदावरी भरी।
मुआवजे पर निर्मम कैंची, टेढ़ी चाल चले,
होरी के अँगुली की गिनती, होती कहाँ खरी।।

हर हिसाब पर हुक्मरान का, गब्बरपन बोले।
कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।२

बीज खाद की चढ़ी उधारी, लागत माटी में।
बहा मुफ्त में खून पसीना, इस परिपाटी में।
चना-चबेना रूखी-सूखी, रोटी से लड़कर,
हार गया है कृषक खेत की, हल्दी घाटी में।।

जीत गई बेरहम दलाली, और श्वेत चोले।
कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।३

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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