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उत्तराधिकारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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स्वयं का उत्तराधिकारी
चुनना क्यों जरूरी हुआ
क्या वंश परंपरा ही है
उत्तराधिकार की परिभाषा???

कितने प्रश्न कितने
ऊबाल हैं मन के भीतर
चिन्तित हो रहे विचार
अपनी दिशाओं से मुक्त होकर
स्वार्थ को कर्तव्य समझ कर !

किसको दूँ इस पथ को,
संरक्षित कर निरंतर
बढ़ने का संदेश
किस सत्य से
उजागर करूँ अपनों से
अपने होने का अधिकार??
कर्म-धर्म, करुणा के
संरक्षण से, चुनना
चाहता हूँ एक ऐसा पथिक
जो संघर्ष की शपथ
ले जीवों के उद्धार का
सृष्टि को संवारने का,
उसका कर्ज चुकाने का
जाने कैसी विडंबना है,
नकार नहीं सकता
बोझ से भरे रिश्तों को
क्यों ढ़ो रहे हैं इन्सानियत
को जिंदा लाशों की तरह
आजकल हवाओं में
कुछ जहर सा फैला हुआ है
रक्त में समा जाने
का डर है इसे,
कैसे दूर करूँ इसका ये
कसैलापन इस जीवन से
क्या परिणाम होगा
उत्तराधिकारी चुनने का??

क्यों खून के रिश्ते
को ही अधिकार है
उत्तराधिकारी होने का
क्यों नहीं बनती परिभाषा
स्नेह, करुणा दया,
उत्तराधिकारी शब्द का???

एक युद्द भीतर समाता
चला जा रहा है
नहीं चुनना चाहता अपना
अधिकारी मैं
धृतराष्ट्र बनकर
अक्सर एक प्रश्न
कौंध जाता है
अन्तःकरण में
क्या जी रहा हूँ
मात्र संयोग है या
दुआओं में असर है??

कृष्ण जैसा सारथी चाहिए
इस महाभारत को
जीतने के लिए
क्या “पार्थ” बन
ढूँढ पाऊँगा
उस उत्तराधिकारी को???

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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