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चांद कहवा छुपल

आनंद कुमार पांडेय
बलिया (उत्तर प्रदेश)
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चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल।
प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।।
दिल के दरवान दिल के दरद ना बुझे।
नीर अखियां के गिरल त सब बह गईल।।

जेके अखियां के पुतरी बनवले रहीं।
उ बदल जायी अइसे खबर ना रहे।।
आसमां के परी जिनके जानत रहीं।
छोड़ अइसे दिहें तनिको डर ना रहे।।
इहे जीवन के असली सच्चाई बा हो।
नाहीं मुहवा खुलल बात सब कह गईल।।
चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल।
प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।।

बनके परछाई जे हमरा साथे चलल।
आज ओही के रहिया निहारत बानी।।
जे सजावल सनेहिया के संसार के।
का भईल अब कि उनके बिसारत बानी।।
सात सूर जेके आपन बनवले रही।
बेसुरापन के फिर भी झलक रह गईल।।
चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल।
प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।।

सुख के सपना देखल आज सपना भईल।
जान जायी की रही बा फेरा लगल।।
आस के जो जरवनी दीया बुझ गईल।
रात जीनीगी भईल ना सवेरा लगल।।
खास रहे जे अब पास बावे हीं ना।
दिल कसक में हीं सारा दरद सह गईल।।
चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल।
प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।।

जानी गइनी ए माया के संसार में।
जे जीनीगी निबाहे उ मिल ना सकी।।
जवन फूलवा लगल पेड़ से झर गईल।
फिर दुबारा कली बनके खिल ना सकी।।
केहू समझे ना आनंद दिल के व्यथा।
उड़ल खोता से चिरइया चहक रह गईल।।
चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल।
प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।।

परिचय :- आनंद कुमार पांडेय
पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय
माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी
जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४
निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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