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ममता भरे आंचल को पहचानो

श्रीमती निर्मला वर्मा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हे महिलाओं ….
ओ महिलाओं ….

ममता भरे माँ के मन
और आंचल को पहचानो,
सौम्य आवरण से
तन-मन संभालो।
विष फैल रहा वासना का
इन दृश्यों से,
अपनी अस्मिता के साथ
इस समाज को बचा लो।।

हिम्मत है जब
इतनी कि धरती से
आसमान तक फहराए
हैं तुमने परचम,
हिम्मत को हिकारत
में ना बदलो कि,
लाज में डूब जाए
नारी का धरम।

लाचार ना बनो इतनी कि
तन की ही कीमत रह जाए,
मन दब जाए इतना कि
रिश्तो की बलि चढ़ जाए।
तन ढल जाएगा जब,
कीमत भी चली जाएगी।
रिश्तो की छांव के लिए
जिंदगी तरस जाएगी।।

रुको ….
जरा सुनो
इस अर्थ के अंधड़ से बचकर
उस मार्ग पर चल दो,
जिस मार्ग में तुमने
शासन को संभाला है,
आसमान में अंतरिक्ष की
ऊंचाई को नापा है,
कितने ‘तुलसी’ को
महामार्ग दिखलाया है,
महापुरुषों की जननी का
महाश्रेष्ठ पद पाया है,
ममता भरी गोद में कितने
वीरों को खिलाया है।।

नारी, स्त्री, महिला, वामा…
इन शब्दों में बसती है तू माँ।

कितनी स्तुति करें तुम्हारी,
तू है प्यार की जागृत प्रतिमा,
राह दिखाने वाली माँ,
तुम कैसे आज भटक रही हो,
भौतिकवाद में पड़कर,
मन से हटकर,
क्यों तुम तन में
सिमट रही हो।

समाज भटक रहा है तुमसे,
माथे से यह कलंक मिटा दो …

अपनी ममता से
हिम्मत से ‘लाज भरी गरिमा’
से निर्मित समाज पर,
उज्जवल सा तुम
तिलक लगा दो ….

परिचय :- श्रीमती निर्मला वर्मा
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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