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तू कापुरुषों का पूत नहीं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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चलने से पहले तय कर ले,
दुर्गम पथ है अँधियारों का।
हे वीर व्रती ! तब बढ़ा चरण,
होगा रण भीषण वारों का।।

यह भी तय है तू जीतेगा,
शासन होगा उजियारों का।
तू कापुरुषों का पूत नहीं,
वंशज है अग्निकुमारों का।।

नदियाँ लावे की बहती थीं,
जिनकी शुचि रक्त शिराओं में।
जो हर युग में गणनीय रहे,
धू-धू करती ज्वालाओं में।।

तू उन अमरों का अमर पूत,
आर्यों की अमर निशानी है।
तेरी नस-नस में तप्त रक्त,
पानीदारों का पानी है।।

हे सूर्य अंश अब दिखा कला,
कर सिद्ध शौर्य टंकारों का।
दुनिया बोलेगी जयकारे,
दिल दहल उठेगा रारों का।।
तू कापुरुषों का पूत नहीं,
वंशज है अग्निकुमारों का।।

तेरी जननी की हरी कोख,
करुणा की तरल पिटारी से।
अवतरण हुआ है हे कृशानु!
तेरा बुझती चिनगारी से।।

हे हुताशनी पावक सपूत!
बलधर अकूत दमदारी से।
कर दानवता को भस्मभूत,
अनलत्व भरी किलकारी से।।

खूँखारों की ललकारों का,
सुन अट्टहास गद्दारों का।
अब सहनशक्ति से बाहर है,
कर ध्वंस वंश अँधियारों का।।
तू कापुरुषों का पूत नहीं,
वंशज है अग्निकुमारों का।।

जो सीधे पथ के राही हैं,
जिनके जीवन में मोड़ नहीं।
जिनको मरने तक जीना है,
उन सबसे तेरी होड़ नहीं।।

मरकर भी नहीं मरे अब तक,
जिनके साहस का जोड़ नहीं।
उनसे ही तेरी तुलना है,
जिनका दुनिया में तोड़ नहीं।।

हो चुका निवेदन ज्वारों का,
अब समय गया मनुहारों का।
हे अग्निपथिक संकोच त्याग,
दायित्व निभा अधिकारों का।।
तू कापुरुषों का पूत नहीं,
वंशज है अग्निकुमारों का।।

तोपों तीरों तलवारों का,
नित नए-नए हथियारों का।
साहस की अग्नि परीक्षा का,
आ गया समय जयकारों का।।
वैश्वानर के परिवारों की,
प्राणाहुतिओं हुंकारों का।
तू कापुरुषों का पूत नहीं,
वंशज है अग्निकुमारों का।।

(कापुरुष=कायर, कृशानु=अग्नि, हुताशनी=अग्निधर्मा, उत्सर्ग प्राण=वीर गति, वैश्वानर=अग्नि)

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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