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सपनों का महल

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मैंने कभी संजोए सपने
सपनों में खो, खो कर
कई महल ढहाये मैंने
सपनों में बना-बना कर।

आया कोई दूर गगन से
तारांगणो का व्युह
करो आंगन को दीप्त मेरे
समा गया पुनः सपनों में।

भर-भर पूंज उलिचा मैने
सपनों के दोनों से
गति प्रकाश की देखी मैंने
कोसो, मिलो थी जो दूर
मन बावरा उड़-उड़ जाता
गवर्नर क्षितिज से दूर।

यह पर्वतों की हरियाली
वृक्षों की ऐ छाया
शाख-शाख पर क्यों पुकारे
पी-पी पपीहा गान।

सपनों में जो मंजर देखा
देखा स्वयं को चहकते हुए
आंखें खुली तो न था पर्वत
न हीं उलिचा गया कोई पुंज।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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