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हे राम जी! मेरी गुहार सुनो

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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हे राम जी! मेरी पुकार सुनो
एक बार फिर धरा पर आ जाओ
धनुष उठाओ प्रत्यंचा चढ़ाओ
कलयुग के अपराधियों
आतताइयों, भ्रष्टाचारियों पर
एक बार फिर से प्रहार करो।
उस जमाने में एक ही रावण
और उसका ही कुनबा था
जो कुल, वंश भी राक्षस का था
फिर भी अपने उसूलों पर अडिग था,
पर आज तो जहां-तहां
रावण ही रावण घूम रहे हैं
जाने कितने रावण के
कुनबे फलते-फूलते
वातावरण दूषित कर रहे हैं।
इंसानी आवरण में
जाने कितने राक्षस
बहुरुपिए बन धरा पर आज
स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं
समाज सेवा का दंभ भर रहे हैं
सिद्धांतों की दुहाई गला
फाड़कर दे रहे हैं
भ्रष्टाचार, अनाचार
अत्याचार ही नहीं
दंगा फसाद भी
खुशी से कर रहे हैं
दहशत का जगह-जगह
बाजार सजा रहे हैं।
जाति धर्म की आड़ में
अपना उल्लू सीधा
कर रहे हैं
अकूत धन संपत्ति से
घर भर रहे हैं।
आज हनुमान, निषाद राज,
केवट कहां मिलते
भरत, लक्ष्मण शत्रुघ्न
सिर्फ अपवाद ही बनते
कौशल्या, सुमित्रा सरीखी
मां भी आज कितनी है
आज की कैकेई, मंथरा
बड़े मजे में रहती है
कौन आज आपकी तरह
राम बनना चाहता है
आपके आदर्श का सिर्फ
बहाना बनाना जानता है।
आज भी आपके
दुश्मन हजार हैं
चोरी छिपे मौका मिला तो
वार को भी तैयार हैं।
जब पांच सौ साल
बाद जैसे-तैसे
आपको अपना घर/मंदिर,
जन्मस्थान मिल रहा है
तब आज भी जाने
कितनों का खाना
खराब हो रहा है
और एक आप हैं
कि आपका आदर्श
आज भी नहीं डिगता
डिगता भी कैसे जब
सिंहासन का मोह न किया था
खुशी-खुशी चौदह वर्षों का
वनवास स्वीकार कर लिया था
तब एक अदद स्थान की चिंता
आप भला क्यों करते?
वैसे भी आप सब जानते हैं
इस कलयुग में जाने कितनों ने
आपको अपनी ही जन्म भूमि से
बेदखल करने का षड्यंत्र रचा
सारे दांवपेंच हथकंडों से प्रपंच रचा
किसी ने आपको महज
काल्पनिक कहा
तो किसी ने तुलसी दास
को बकवास कहा
पर उन बेशर्मों का सारा
प्रयास बेकार गया।
आज जब आपका मंदिर
बन रहा है तब भी
कुछ बहुरुपिए कथित
सात्विक भक्त बन रहे हैं,
सच हमें ही नहीं
आपको भी पता है
ये सब दुनिया की
आंखों में धूल झोंक रहे हैं
अपनी-अपनी रोटी
सुविधा से सेंक रहे हैं।
कुछ जूनूनी आपके लिए
अड़े खड़े रहे
आपके घर मंदिर
निर्माण के लिए
आज भी तने खड़े हैं,
षड्यंत्रकारियों की
दाल नहीं गल रही है
उनकी हर चाल
निष्फल हो रही है।
बहुरुपियों की नीयत
न कल साफ थी
न आज ही साफ है।
न कभी साफ ही होगी।
मगर आपके भक्त
आज भी पहले की तरह ही
आपके भरोसे कभी
भी नहीं डरे हैं
अपना विश्वास भी
नहीं खोते हैं।
परंतु आतताइयों,
गिरगिटों, कथित भक्तों का
आज भी कोई भरोसा नहीं है
पर आपके भक्तों को
इनसे अब कोई डर नहीं।
मगर प्रभु! मैं ये सब
आपको क्यों बता रहा हूं
शायद अपने मुंह
मियां मिट्ठू बन रहा हूं
आप तो सब जानते हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम हैं
बीते पलों को ही नहीं
आने वाले पल में भी
जो होने वाला है,
वो सब भी जानते हैं।
फिर भी मेरे प्रभु राम जी!
मेरे दिल की पुकार है
अपने सारे तंत्र को आज
फिर से गतिमान कर दो
अपने-अपने काम पर लग
जाने का सबको आदेश दे दो
अनीति, अन्याय, अत्याचार,
भ्रष्टाचार, व्यभिचार पर
सीधे प्रहार का
एक बार में निर्देश दो
अपने शासन सत्ता को
फिर स्थापित कर दो।
हे रामजी! आज फिर
आपकी जरूरत है
कलयुग में भी
रामराज्य स्थापित हो
यही आज की
सबसे बड़ी जरूरत है
आपके भक्त की
फरियाद महज इतनी है।
जब तक राम
मंदिर बन रहा है
तब तक आप सारा
बागडोर अपने हाथ में लेलो
एक बार फिर से
अपना रामराज्य ला दो
फिर मजे से अपने
मंदिर में चले जाना
बाखुशशी अपना
आसन ग्रहण कर लेना
सूकून से जी भरकर
भक्तों को दर्शन देना।
हे राम! मेरी पुकार सुनो
मौन छोड़ मैदान में आ जाओ
रामराज्य का हमें भी तो
कम से कम एक बार दर्शन कराओ।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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