Friday, November 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

बदली आबो-हवा देख रहा हूं

शाहरुख मोईन
अररिया बिहार
********************

शहर की बदली आबो-हवा देख रहा हूं,
बीमारों की कतारें हाथों में दवा देख रहा हूं।

मुर्दा खोर इंसानों से मिलना है तो देखिए ये बस्ती,
कितने इंसानों को पूछते मैं रास्ता देख रहा हूं।

खुशियों के आंसू गम के आंसू देख रहा हूं,
कितने लबों पे अभी उसका चर्चा देख रहा हूं।

इंसानों की लुटती दुनियां जंगली बस्ती देख रहा हूं,
कदम-कदम पर पैसों को रुपए बनते देख रहा हूं।

आनी जानी दुनिया में बैठा तमाशा देख रहा हूं,
सोच में हूं हकीकत देख रहा हूं या सपना देख रहा हूं।

बेरोजगारों की बस्ती में भुखे सियार कितने हैं,
मिट्टी के इंसानों को “शाहरुख” खाते मुर्दा देख रहा हूं।

परिचय :- शाहरुख मोईन
निवासी : अररिया बिहार
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *