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पानी

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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रे बाबा कैसी जिंदगानी है,
पानी की भी अजब कहानी है,
पानी से ही धोना नहाना,
पानी से ही पीना खाना,
नहीं करती कभी ओछी हरकत,
पानी निःस्वार्थ देती है कुदरत,
पर कुछ जातियों में
जबरदस्त शक्तियां देखी जाती है
जो अन्न को, जल को,
यहां तक भगवान को भी
अपवित्र कर देते हैं,
कइयों की भावनाएं आहत कर
उनमें मातम भर देते हैं,
इनके आगे कोई नहीं ठहरता,
पता नहीं कौन है इनमें शक्ति भरता,
सुअर, कुत्ते, बैल जैसे जानवर भी
किसी घाट, जलाशय को
अपवित्र नहीं कर सकते,
पर वाह रे अमानवीय नियम
कुछ मानव पानी में
अपना पांव नहीं धर सकते,
मगर धन्य है वो महामानव,
जिसने मनुवादियों के सामने
पानी छूने से लेकर पीने तक का
अधिकार दिलाया,
लोगों को पानी पिलाया,
रोते रहें वे जो रहते हैं हरदम रोते,
लेकिन इतना जरूर जान लें
पानी और खून कभी अपवित्र नहीं होते।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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