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गगन गोचर देव प्रचंड हैं

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण

ॐस रवये नम :

गगन गोचर देव प्रचंड हैं ।
प्रसरते चहुँ रश्मि अखंड हैं ।।
परम ज्योति अलौकिक धन्य है ।
सुखद चारु सरूप सुरम्य है ।।

जगत भासित है तुमसे शुभी ।
निरत रहते ना रुकते कभी ।।
जपत जे प्रभु भानु हँ नित्य हैं ।
भरत ते धन-धान्य सुकृत्य हैं ।।

अदिति पुत्र प्रभो तम नाशिकी ।
रवि अहस्कर तेजस मानकी ।।
इसलिए इनको कहते चहूँ ।
कनक रूप धरे दिखते दहूँ ।।

निशि-दिना जगते सुप्रभास हैं ।
जगत के इक सुन्दर आस हैं ।।
अरुणि सारथि हाँकत स्यंदना ।
करत देव जती सब वंदना ।।

दिखत अद्भुत दृश्य मनोहरा ।
अरुणिमा बिखरे जब भास्कर ।।
जयति भानु विकर्तन देवता ।
प्रथम पूज्य अर्क विभेदता ।।

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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