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जब श्रृंगार सजाती कविता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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भाव हृदय का बाहर आकर,
कविता बन जाता है।
अगर भाव दिल को छू जाए,
तब जन-जन गाता है।

कविता क्या है,भाव हृदय का,
प्रमुदित मन हो जाता
भावविभोर खिला जीवन को,
सुंदरवन हो जाता।

उठा कलम कुछ भी लिख डाला,
तब कविता रोती है।
सार्थक लिखे कलम जिसकी भी,
वही सीप मोती है।

अरी कलम, लिख डाल भुखमरी,
और गरीबी लिख दे।
अत्याचार पाप तू लिख दे,
मजबूरी भी लिख दे।

रही लेखनी सदा समर में,
कवियों का ही गहना।
दिनकर सूर निराला जी की,
कविता का क्या कहना।

कभी तोड़ती पत्थर लिक्खा,
मीरा का दुख दर्द लिखा।
रसवंती हुंकार भी लिखी,
कुरुक्षेत्र, प्रणभंग लिखा।

मन की वीणा झंकृत होती,
जिसको पढ़ लेने से।
कैसे कोई कवि बन सकता,
कुछ भी लिख लेने से।

कविता भाती सारे जग को,
है इतिहास पुराना।
ओजपूर्ण कविता का जग में,
सब ने लोहा माना।

जब कविता श्रृंगार सजाती,
लाज, लाज को आती।
मधुर मिलन की आस ह्रदय में,
घूँघट में शर्माती।

वात्सल्य रस पीती कविता,
माँ का आँचल गीला।
माँ का प्यार दिखे बच्चे को,
लाल गुलाबी पीला।

स्तर हीन लिखें जो कविता,
वे भाषा के दुश्मन।
क्यों कर कलम चलाते हैं वे,
जिनके है कलुषित मन।

गरिमा मय साहित्य सदा ही,
कवि का मान बढ़ाता।
भरी भाव से सुंदर कविता,
मनमोहित हो जाता।

करें प्रतिज्ञा वचनबद्ध हो,
पावन कलम चलाएं।
कविता को आँचल में रखकर,
कर दें दूर बलाएं।

भरी विश्व के कवियों ने भी,
कविता में गहराई।
शिखर हिमालय सी ऊँचाई,
है कविता ने पाई।

चाँद सितारों सा चमका दें,
हम प्यारी कविता को।
सारा जग यों शीश झुकाए,
ज्यों झुकता सविता को।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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