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पुस्तकें सत्य की

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार।
सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।।

देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य।
पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।।

पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप।
पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।।

पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म।
पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।।

पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश।
पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।।

पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ।
पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।।

पुस्तक में दर्शन भरा, पुस्तक में विज्ञान।
पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।।

पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल।
पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।।

विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप।
पुस्तक को सब पूजते, रंक रहेे या भूप।।

पुस्तक ने संसार को, किया सतत् अभिराम।
पुस्तक जीने की कला, पुस्तक नव आयाम।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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