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ममतामय आंचल में

राजीव डोगरा “विमल”
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
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माँ! ममतामय आंचल में
फिर से मुझे छुपा लो
बहुत डर लगता है मुझे
दुनिया के घने अंधकार में।
माँ! फिर से अपने प्यार भरे
अहसासों के दीप
मुझ में आकर जला दो।
माँ! खो न जाऊँ कहीं
दुनिया की इस भीड़ में
माँ! फिर से हाथ थाम मेरा
कदम से कदम मिला
मुझे चलना सीखा दो।
माँ! डरा सहमा सा रहता हूं
मतबलखौर लोगों की भीड़ में
माँ! अपना ममतामय आंचल
उड़ा मुझे फिर से अपनी
प्यार भरी लोरी गा सुला दो।

परिचय :- राजीव डोगरा “विमल”
निवासी – कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
सम्प्रति – भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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