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घर बैकुंठ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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आज खो गया हूँ अतीत में,
याद पुरानी आई।
याद पुराना घर आया है,
जिसमें उम्र बिताई।

रहता हूँ तिमंजिलें घर में,
पर वह मजा कहाँ है।
ऊधम के बदले में पाई,
अब वो सजा कहाँ है।

लिपता था जब घर का आँगन,
गोबर और चूने से।
घर बैकुंठ नजर आता था,
हाथों के छूने से।

घर से लगे एक कमरे में,
गाय बँधी रहती थी।
पानी गिरता था छप्पर से,
खुशी-खुशी सहती थी।

लक्ष्मी जी से पहले पूजन,
होता था गैया का।
शुद्ध दूध से भोजन होता,
था छोटे भैया का।

कच्चे घर में पक्के रिश्ते,
प्यार भरे दिखते थे।
सीता-राम लाभ-शुभ घर के,
द्वारे पर लिखते थे।

मिट्टी घास-फूस से मिलकर,
बनते थे घर प्यारे।
घर के आँगन से दिखते थे,
सूरज चाँद सितारे।

बिना साधनों के ठंडक थी,
खुशहाली थी घर में।
थे पुष्पित गाँवों में रिश्ते,
दिखते नहीं नगर में।

घी, मट्ठा, माखन से भोजन,
रुचिकर हो जाता था।
बिछा बिछौना धरती पर ही,
घर भर सो जाता था।

नेह,प्यार था हर रिश्ते में,
गर्माहट थी भारी।
उसी पुराने घर में होती,
थी सामूहिक व्यारी।

रोज नहाकर पूजा करने,
मंदिर में जाते थे।
दूध ओंट कर बासी रोटी,
सब बच्चे खाते थे।

प्यार भरा था हर रिश्ते में,
सुंदर ताना-बाना।
बचा हुआ है बस यादों में,
अब वह गेह पुराना।

सारी सुविधाएं पाकर भी,
खुशियाँ पास नहीं हैं।
बच पाएंगे गेह पुराने,
यह भी आस नहीं है।

आज पुराने घर की हमको,
पल-पल याद सताती।
जैसा प्यार वहाँ पाया है,
जिव्हा ना कह पाती।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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