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फ़रेबी

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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मुझे मालूम है वह फरेबी है,
पर मुझ तन्हा के लिए
वहीं तो सबसे करीबी है,
मकड़जाल से ज्यादा उलझनों वाली
रिश्तों का भयानक रूप,
मेरे लिए वो जरूर है कुरूप,
पर वही है मेरे सिर को छांव देता
रोककर कंटीली नुकीली धूप,
उसके कारण थोड़े बोल लेता हूं
नहीं रहना पड़ता है चुप,
उनका लगाव तो देखिए
लाखों संभावनाएं के बाद भी
सिर्फ मुझसे ही फरेब करता है,
मेरे लिए प्यार इतना उनका
मुझे छोड़ दुनियादारी से डरता है,
कहता है आपको शत्रु की क्या जरूरत
जब मैं आपके साथ हूं,
कुछ और की चाहत क्यों
मैं ही तो जज्बात हूं,
देता है दर्द रिश्तों का दिया हुआ,
अब मैं हो चुका हूं मर मर के जीया हुआ,
अब तो एक जैसा है नफरत और लाड़,
अब कोई प्यार जताये या लताड़।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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