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नारी तू नारायणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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नारी तू नारायणी, है दुर्गा का रूप।
रमा, उमा, माँ शारदे, में तेरी ही धूप।।

नारी तू नारायणी, ज्ञान, चेतना, मान।
जिस गृह रहती तू वहाँ, पलता नित उत्थान।।

नारी तू नारायणी, जीवन का है सार।
तेरे कारण ही मिला, जग को यह उजियार।।

नारी तू नारायणी, है सुर, लय अरु ताल।
गहन तिमिर हारा सदा, काटे तू सब जाल।।

नारी तू नारायणी, तू हर पल अभिराम।
तू धन, विद्या, नूर है, तू है मीठी शाम।।

नारी तू नारायणी, गरिमा तेरे संग।
खुशियों का उत्कर्ष तू, तेरे अनगिन रंग।।

नारी तू नारायणी, रोते को है हास।
मायूसी में तू रचे, जगमग करती आस।।

नारी तू उर्जामयी, नारी तू तो ताप।
तेरे गुण, देवत्व को, कौन सका है माप।।

नारी तू नारायणी, ममतामय हर रोम।
करुणामय, शालीन है, ऊँची जैसे व्योम।।

नारी तू नारायणी, कभी न माने हार।
साहस तेरा देखकर, होती जय जयकार।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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