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ऊँचाई में स्वयं हिमालय

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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सहनशीलता वसुधा जैसी,
सागर-सी गहराई।
ऊँचाई में स्वयं हिमालय,
माँ-सी ममता पाई।

नारी हर मानव की जननी,
जगत जननि कहलाती।
दुख पीड़ा में जब शिशु होता,
तब उसको सहलाती।

अपने आँचल की छाया दे,
सुख सौभाग्य जगाती।
जीवन की सारी बाधायें,
दे आशीष भगाती।

अपने तन को गार-गार कर,
देती रूप सलोना।
हर बच्चा होता है अपनी,
माँ के दिल का कोना।

अपने मन की करुण वेदना,
मुख से ना कह पाती।
पृथ्वी जैसी सहनशील है,
सब कुछ सहती जाती।

जब अन्याय अधिक होता है,
सहनशीलता खोती।
गौ का रूप धारकर पृथ्वी,
प्रभु समीप जा रोती।

हर अपमान,घृणा सहकर भी,
कभी अधीर न होती।
अपने उर को बना समंदर,
मन ही मन में रोती।

एक-एक आँसू नारी का,
पड़ जाता है भारी।
मानव तेरी क्या विसात है,
डर जाते त्रिपुरारी।

है अवतार सृष्टि का नारी,
करें सृष्टि सम पूजा।
नारी है आधार पुरूष का,
कोई और न दूजा।

बंद करो नारी उत्पीड़न,
नारी सबकी माता।
पूजनीय है परमपिता-सी,
पाते जन्म विधाता।

गौ माता, लक्ष्मी माता-सी,
पूजित होगी नारी।
तभी राष्ट्र खुशहाल बनेंगे,
सुरभित दुनिया सारी।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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