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विडंबना

अजय गुप्ता “अजेय”
जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश)

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हर साॅंझ डूबता है सूरज,
प्रातः फिर उग आता है।
तन-थकन,मन-विषाद भगा,
संचार-चेतना लाता है।

सुबह सबेरे खेतों पर,
हर मौसम में जाता है।

हर साॅंझ डूबते सूरज तक,
थकहार लौट घर आता है।
अपने खून पसीने से सींच,
धरती पर अन्न उगाता है।

अपने परिवार के साथ-साथ
जग भर की भूख मिटाता है।
सर्दी-गर्मी हर मौसम में,
महानगर को जाता है।

चढ़ बांस-फूंस की सीढ़ी पर,
सपनों के महल बनाता है।
अपने जीवन के जोखिम पर,
चंद कौर से भूख मिटाता है।

भट्टी पर देह तपा अपनी,
उपयोगी बर्तन बनाता है।
हो फूलदान या हो मूरत,
सुंदर रंगों से सजाता है।

नित भोर किरन से पहिले,
तांवा-पीतल को गलाता है।
फिर रेत-रगड़ चमकाकर,
घुंघरू-झंकार सुनाता है।

मंदिर की घंटी या हो घंटा,
बिन जिसके न बन पाता है।
भट्टी-घरिया धुंआ-नीला,
सांसों को बहुत फुॅंलाता है।

हो चूक ज़रा सी जो उससे,
बदन-आंत झुलसाता है।
फिर भी मेहनतकश जीवन में,
बदलाव नही आ पाता है।

ना बदल रहा है हुकुमरान,
ना मालिक दया दिखाता है।
आह! लोकतंत्र की विडंबना,
सर्वहारा नही उठ पाता है।

हर साॅंझ डूबता है सूरज,
प्रातः फिर उग आता है।।

परिचय :- अजय गुप्ता “अजेय”
निवासी : जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा : स्नातक ऑफ लॉ एंड कॉमर्स, आगरा विश्व विद्यालय, आगरा
सामाजिक कार्य : नियमित रक्तदाता, भारत विकास परिषद, नुपुर शाखा, गौ ग्रास सेवक, गऊशाला गंगेश्वर मुक्तिधाम जलेसर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अखिल भारतीय व्यापार मंडल,जलेसर, भूतपूर्व सचिव श्री घुंघरू उद्योग मंडल जलेसर एटा, भूतपूर्व सचिव भारत विकास परिषद नुपुर जलेसर
लेखन विधा : दोहा, छंद, मुक्तक, कविता, गीत, कहानीं।
लेखन : छात्र जीवन से अनवरत जारी। काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन, शताधिक रचनायें जोकि अमर उजाला ‘काव्या’ एंव साहित्यक रचना ई पत्रिका में समय समय पर प्रकाशित होती रही है। पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित।
उपलब्धि : (१) अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच के पटल पर महान स्वतंत्रता सेनानियों पर कविता में शताधिक मनीषियों के साथ भाग लिया और ‘वीर विनायक दामोदर सावरकर’ पर स्वरचित कविता पढी जो कि गोल्डन बुक ऑफ बर्ड रिकार्ड में दर्ज हुई। (२) सिख पंथ संस्थापक ‘गुरु नानकदेव’ के जीवन पर अंतरराष्ट्रीय काव्यपाठ किया जिसमें एक सौ पचास कवि कवित्रियों ने २४ घंटे लगातार काव्यपाठ किया और जो विश्व रिकार्ड के लिये आवेदित है। विभिन्न काव्य सम्मेलनों में नियमित भागीदारी।)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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