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आरंभ

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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नवीन पथ पर
बड़ चला
नव संगठित समाज है

मनमुटाव भूलो विनोद करो
ओ मनोज ! मन में ओज भरो
अभी छूना आकाश है

आस की डोर थाम कर
कर्म कर ना विश्राम कर
पाऐंगे मंजील ये विश्वास है

क्या अंधेरा मिटाऐंगें
धृतराष्ट्र और सारथी
ना ‘सत्य का प्रकाश’ है

कोई लाख दबाये सच को
झूठ मुँह की खाएगा ‘राजन’
ये ‘इन्द्र’ की आवाज है

युवा कर्ण कम नहीं
सत-राज-योग-इन्द्र को गम नहीं
ध्वज थामे अश्व सवार है

जुगनु रूप बदल रहे
दीपक बनकर जल रहे
त्वीशा और अंगार हैं

चन्द्र की सी प्रभा में
स्मित मधु हास में
हो रहा विकास है

किशन-राम-शिव साथ है
अशोक बने मणी माथ है
सुमन’ की ‘नवल’ सुवास है

परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
आयु : ४१ बसंत
निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश)
विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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