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कपड़े काट बनाता है दिल

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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कपड़े के टुकड़ों के जैसा,
कोई दिल सिल पाता।
ऐसा कारीगर दुनिया में,
कहीं मुझे मिल जाता।

कपड़े काट,बनाता है दिल,
फिर आपस में जोड़े।
छोटा-बड़ा बने जैसा भी,
पर उसको ना तोड़े।

बड़े प्यार से इन्हें बनाता,
मन ही मन खुश होता।
ये दिल सबको मोहित करते,
दादा हो या पोता।

कपड़े का दिल नहीं धड़कता,
फिर भी प्यारा लगता।
इन्हें देखकर हर इंसा के,
उर मैं प्यार पनपता।

इनमें रक्त नहीं बहता है,
धड़कन भी ना होती।
इनमें प्यार नहीं होता है,
नहीं भावना होती।

फिर भी कपड़ों के नाजुक दिल,
मन को अच्छे लगते।
इन्हें देख कर मधुर प्यार के,
भाव हृदय में पगते।

अब सोचो ऊपर वाले ने,
दिल अनमोल बनाया।
नादाँ तू अनमोल रत्न की,
कीमत समझ न पाया।

तू कठोर,मिथ्या वाणी से,
दिल के टुकड़े करता।
कर अधर्म तू सब को मारे,
बिना मौत खुद मरता।

सारे भाव उपजते दिल में,
दिल अनमोल धरोहर।
बहा प्रीत की धार हृदय में,
दिल को बना सरोवर।

तू सारी दुनिया को अपने,
दिल से आज लगा ले।
हृद में बहा प्यार की गंगा,
सोया भाग्य जगा ले।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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