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अल्हड़ गोरी है शरमाई

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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काम-वाण मारे अनंग ने, अल्हड़ गोरी है शरमाई।
गदराया यौवन कहता है, धरती पर पसरी फगुनाई।।

मधुकर कर में रंग छुपाए, सुमन गाल पे छाई लाली।
चंचल तितली झूम रही है, हँसती है गेहूँ की बाली।।
प्रीति पलाशी ओढ़ चुनरिया, आई छत प्रणयी इठलाती।
कजरारी आँखें फगुनारी, चले षोडशी भी बलखाती।।
ढोल-मृदंग चंग बजते हैं,सुन कर बौराई अमराई।

ठुमुक रही बागों में कोयल, हिरणी मस्त कुलाँचे भरती।
प्रेम-गीत गुलमोहर गाता, तन-मन सरसों मोहित करती।।
यौवन है छाया धरती पर, मधुमय चुम्बन देता महुआ।
श्वासों में घुलता फागुन है, बहकी-बहकी सी है पछुआ।।
अंतस् में खिलता सेमल है, हुई तरंगित है अँगनाई।

फागुन की मस्ती में डूबे, जन-जन मार रहे पिचकारी।
भीगी गोरी की चोली है, खिली प्रीति की अब फुलवारी।।
ललचाता है काम देव भी, देख मदिर सतरंगी होली।
भंग-वारुणी पीकर यौवन, मादक होकर करे ठिठोली।।
मधुऋतु में सब झूम रहे हैं, प्रियतम सुधि आई अकुलाई।

संयम डोला सन्यासी का, टूट गए हैं बंधन सारे।
अधर-रसीले ढूँढे प्रिय को, छैल-छबीले आजा प्यारे।
दहक रहा उर विरह अनल में, प्रीति चकोरी भी पगलाती।
मौन निमंत्रण देती आँखें, मन मतंग है लिखता पाती।।
आतुर मिलने को होली में, धड़कन-धड़कन है सकुचाई।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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