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आ गया बसंत है

शैलेश यादव “शैल”
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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विटपों के पुराने पत्ते जब मिलने लगे धूल,
वसुधा भर के वृक्षों में जब लगने लगे फूल,
आम की मंजरी जन जन का मन मोहने लगे,
सेमर पलाश वन लाल सुमनों से सोहने लगे,
तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है।

कलघोष सुमधुर कंठों‌ से जब प्रिय बोलने लगे,
अपनी मधुरता को मनुज के मन में घोलने लगे,
सहजन का तरु जब श्वेत पुष्पों से भर रहा हो,
बरगद जब कूचों को लाल लाल कर रहा हो,
तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है ।

बैरों के वृक्षों में भी जब लालिमा छा गई हो,
जामुन के वृक्ष में भी जब नई पत्ती आ गई‌ हो,
जब कटहल के छोटे फल वृक्ष में लटक रहे हों,
जब अपने पराए सब यहाॅं-वहाॅं भटक रहे हों,
तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है।

महुए में भी छाई एक अलग ही मुस्कान हो,
सुमनोहर सुगंध से भरा जब सारा वितान हो,
जब चारों तरफ खुशियों की छाई बहार हो,
थोड़े ही दिन में आने वाला रंगों का त्योहार हो,
तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत ‌है।

परिचय :- शैलेश यादव “शैल”
निवासी : लतीफपुर कोराॅंव, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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