Tuesday, December 3राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

राधा भाव

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

********************

यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्याहम।
परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।

अपने कान्हा तभी अवतरित होते हैं जब धरती पुकारती है, जैसे त्रेता युग में ´जय-जय सुर नायक, जन सुख दायक´ कहकर पुकारा था।द्वापर युग का अंत समीप था, पृथ्वी कंसों व दुर्योधनों के भार से बोझिल हो रही थी। कलि-काल के उदय का पूर्वाभास होने लगा था। तभी तो वो चुपचाप कारागार में आए। महल में पदार्पण करते तो नंदगाँव, गोकुल, वृन्दावन को कैसे तृप्त करते। उन्होंने युग परिवर्तन को देखते हुए प्रारम्भ की अपनी लीला उस धरती माँ से जिसने उसका पालन किया। कुछ तो कारण था कि उस धरती ने कन्हैया को पुकारा ओर वो चले आए अपनी सोलह कलाओं सहित। वो शैशव काल में ही पूतना वध सेअपनी कलाओं द्वारा अपना स्वरूप प्रकट करने लगे।

अपने बालरूप से ही उस धरती पर भौतिकवाद की ओर बढ़ते भावों को आध्यात्मिकता के दर्शन करा कर तप्त हृदयों को तृप्त करने का खेल रचाया हर गोपी संग रासलीला द्वारा, कभी नदी किनारे मोह कर, ग्वालिनों की मटकी फोड़कर, जो धन लोलुपतावश गोकुल का माखन बाहर बेचतीं, ओर गोकुल के कुलधारक उससे वंचित रह जाते। उनमें सांसारिक भाव का शमन करतेहुए भक्ति भाव जगाया। पढ़ा था कि स्त्रीभाव से मोक्ष नहीं, तो उन्होंने स्त्री भाव को ही कृष्ण भाव में परिवर्तित कर दिया अपने वराधा के वस्त्र परस्पर बदल कर, बताया कि राधा भी कृष्ण है, कृष्ण भी राधा। हर बाला, हर गोपी सब राधा। तभी तो मथुरा वृन्दावन में सब ´राधे राधे´ कह कर ही हर स्त्री का स्वागत करते हैं।

राधा कौन? राधा शब्द के दो अर्थ प्राप्त हैं। प्रथम-
आ उपसर्ग, राध धातु, ना प्रत्यय यानी
आ+राध (पूज)+ ना= आराधना अर्थात् वह तत्व जो पूजा जाए। यजुर्वेद के राधोपनिषद में लिखा है कि ´कृष्णेन आराधते इतिराधा´। जिस तत्व की आराधना कृष्ण करते हैं वह तत्व है राधा। आराधना तत्व में भाव रहता है ´भक्ति´ का। बिना भक्ति केआराधना सम्भव नहीं।

राधा का दूसरा अर्थ है आराधिका,अर्थात् जो आराधना या भक्ति करे वो राधा। तो भगवान व आराधना अभिन्न हैं, परस्पर भाव हैं। आराधना से ही ईश्वर का अस्तित्व है, ईश्वर है तो आराधना का अस्तित्व है। तो भक्तिमार्ग पर जो लाती है वह राधा है। तो भक्ति का पर्याय हैं राधा। भक्ति स्वरूपा, सम्पूर्ण समर्पण भाव के साथ ईश्वर में लीन है ´राधा´। जय श्री कृष्ण, राधे-राधे।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *