Friday, November 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

माँ केवल माँ जैसी होती

डॉ. अवधेश कुमार “अवध”
भानगढ़, गुवाहाटी, (असम)
********************

चाहता हूँ वक्त को, मुट्ठी में अपने बंद कर लूँ,
ज़िंदगी की दौड़ में अब, माँ न मेरी दौड़ पाती।
***
जंग लड़ती ही रही माँ, ज़िंदगी भर ज़िंदगी से,
वक्त ने धोखा दिया है, ज़िंदगी के साथ मिलकर।
****
माता ने फिर भाँप लिया है, बेटे की नादानी को,
किंतु न बेटा समझ सका है, कुर्बानी अपने माँ की।
****
माँ को अपने छोड़ गया है, बेटा एक अनाथालय में,
वर्षों पहले उस बच्चे को, उसी जगह से गोद लिया था।
*****
माँ – बापू को छोड़ अनाथालय में, बेटा भागा है,
शायद उसके तीर्थाटन की, ट्रेन छूटने वाली है।
*****
पढ़ी- लिखी वह नहीं किंतु बेटे का मन पढ़ लेती है,
जाने कब, किन स्कूलों में, माँ ने ये भाषा सीखी?
*****
माँ केवल माँ जैसी होती, गुरु, ईश्वर सब पीछे हैं,
जग में ऐसा बैंक नहीं, जो उसके ऋण को चुका सके।
*****

परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार “अवध”
सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार
निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम)
शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *