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आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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वसन्ततिलका- उक्ता वसंततिलका तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण , जगण , दो गुरु – १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त)

ॐ स सूर्याय नम :

आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी।
आओ प्रभास भरके, तम हे निवारी।।
मुक्ता सुमाल पहिरे, गल है सुहाता।
प्रद्योत राशि बिखरे, जब हो प्रभाता।।

संपतिवान करते, रवि हैं दयालू।
पूजो सदा प्रबल को, यह हैं कृपालू।।
बाधा सभी निपट के, सुख शांति देती।
स्वामी सुकर्म कहते, पहले शुभेती।।

आराधना सुखद है रविवार द्यौ की।
शीघ्राति पूर्ण करते, फल देत लौ की।।
प्रातः सुकाल चित में, इनको बिठाना।
सच्ची लगी लगन से, इनको बुलाना।।

संपूर्ण व्योम चलते, थकते नहीं हैं।
उत्पन्न अन्न करते, डिगते नहीं हैं।।
नक्षत्र में प्रथम हैं, बहु हैं प्रतापी ।
सारंग सूर्य जग के, कर लो मिलापी।।

ये ही सदा सुदृढ़ हैं, जग में निराले।
एकाग्र चित्त करके, हिय तो लगा ले।।
है जन्म मानुष फिर से, मिलना सुभाने?
होगा सुभाग्य सुन ले, यह कौन जाने??

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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