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महामानव

डॉ. अर्चना मिश्रा
दिल्ली

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शान्तमय वातावरण भी कितना भयावह लगने लगता है, जब किसी के पास बोलने को कुछ भी ना बचे, सोचने समझने की शक्ति जैसे जड़ हो जायें, क्या ऐसा भी जीवन में कुछ घटित हो सकता हैं, निःशब्दता वास्तव में इतना भयावह माहौल क्यूँ बना देती हैं, की बस उठो और ज़ाओ कहीं बाहर। पूरे दिन के कोलाहल के बाद कुछ घंटों का मौन खलने लगता हैं, ना ख़ुशी ख़ुशी ही रहती हैं, ना ग़म ग़मगीन ही करता हैं, सिर्फ़ टकटकी लगा के एक शून्य हुए को शून्य होकर निर्बाधता से देखे जाना कहाँ तक सही हैं। दूसरे के अंतर्मन की पीड़ा का अनुमान चंद लम्हे उसके साथ बैठकर नहीं लगाया जा सकता, जब तक आप स्वयं उसी पीड़ा से ना गुजरे हों। पीड़ा के भी रूप अनेकानेक हैं, मैं ये कह ही नहीं सकती की किसको कितना अधिक सहना पड़ा होगा, ना ही कोई बराबरी हैं किसी के दर्द की, बस एक आर्तनाद हैं ज़ो निरंतर प्रवाहमान हैं, सबके भीतर बहुत अंदर तक दर्द बैठा हैं, कोई सुनना ही नहीं चाहता क़िस्सा किसी का। रिक्तता और शून्यता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, क्या एक ही साथ हम दोनों का अनुभव कर सकते हैं बहुतों ने किया हैं, इन्ही दोनों का अनुभव करके ही एक नये मानव का सृजन होता हैं, जिसे महामानव की संज्ञा दी जा सकती हैं।
जो पैदा नहीं होता पारिस्थितियाँ उसे बनाती हैं, अपने ही संघर्षों की कहानी को फिर वो दमदार रूप में प्रस्तुत करता हैं, महामानव के पास देने के लिए बहुत कुछ होता हैं, वो अपनी लघुता को बहुत पीछे उन कालिमा रातों में छोड़ आया होता हैं जिसमे उसने कभी घंटों चीत्कार किया होता हैं। आज वो सबल हैं एक स्थितप्रज्ञ स्थिति में हैं, जहाँ ना खोने का डर ना पाने का लालच हैं।
क्या ऐसा नहीं लगता की हममें से ही कितनों ने ऐसी स्थिति का सामना किया होगा, शायद झेल ही रहें हों या उबर चुके हों। अपने मन का महामानव तो हमे स्वयं ही बनना होगा अन्यथा ये समाज बड़ी तेज़ी से भाग रहा हैं, हम कहाँ गिर पड़े और कैसे ही रौंदे जाएँगे ये तो बखूबी ही हम जानते हैं।

परिचय :-  डॉ. अर्चना मिश्रा
निवासी : दिल्ली
प्रकाशित रचनाएँ : अमर उजाला काव्य, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच व साहित्य कुंज में रचनाएँ प्रकाशित।
आपका रुझान आरम्भ से ही हिंदी की ओर था अपने स्कूल व कॉलेज के दिनो से ही मेआपने लेखन का कार्य शुरू कर दिया था। आपने अधिकतर रचनायें कविता एवं लेख के रूप में लिखी है। आपने हिंदू कॉलेज दिल्ली से हिंदी विषय से ही अपनी बीए एमए किया तत्पश्चात् बीएड और एमएड किया। साथ ही साथ आपने काउंसलिंग एंड गाइडेंस का भी कोर्स किया।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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