अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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स्वर्णिम स्वप्न सँजो कर बैठी,
डोली में बिटिया रानी।
होठों पर लालिमा मनोहर,
नैनों में दुख का पानी।कभी सोचती अपने मन में,
मुझे पिया के घर जाना,
झाँक-झाँक पर्दे से कहती,j
भैया मुझे लिवा जाना।नयन नीर हाथों से पौंछे,
पिता सिसकियाँ भरता है।
पहली बार पिता बेटी को,
घर से बाहर करता है।प्यार सुरक्षा अपनापन दे,
माता रखती थी घर में।
कन्यादान पिता ने करके,
सौंप दिया वर के कर में।आँखों से ओझल होते ही,
व्याकुल होते थे पापा।
मुझको आज बिठा डोली में,
क्यों ओझल होते पापा।रुठा करती थी पल-पल में,
आज क्यों नहीं मैं रूठी।
कोई रोक नहीं पायेगा,
सब उम्मीदें हैं झूठी।जाना होगा आज सजन घर,
समझ गई बिटिया रानी।
सजल नयन हैं आज खुशी से,
उम्मीदों का है पानी।सोच रही थी मन ही मन में,
इतने में भाई आया।
नीर भरे नयनों में, बोला,
तुझको रोक नहीं पाया।मैं कैसा निष्ठुर भाई हूँ,
आज बिछड़ती है बहना।
नहीं सताऊँगा मैं तुझको,
लौट, मान जा, तू कहना।भिगो दिया बहना का आँचल,
चार नयन के पानी ने।
रोती अम्मा को समझाया,
घर की बूढ़ी नानी ने।बेटी ने देखा डोली से,
दुख ना हृदय समाता है।
मेरे कारण आज रो रही,
घर में मेरी माता है।चले कहार उठाकर डोली,
बाबुल का अँगना छूटा।
खोया धैर्य, आज धीरज ने,
बाँध, धैर्य का भी टूटा।“शाश्वत सत्य यही जीवन का,
पड़ता है सबको जाना।
परम लक्ष्य मानव जीवन का,
प्रभु स्वरूप साजन पाना।”
परिचय :– अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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