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बदलते रिश्ते

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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रंग बदलते खून के रिश्ते देख
अब तक की उम्र में रिश्तों को हमने खंगाला है।

माना सबको अपने जैसा पर
कोई सनकी, कोई लालची, कोई गुरूर वाला है।

खंजर छुपा कर रखे हैं ताक में
पसीना तो पसीना खून चूसकर मचलने वाला है।

रूप रंग पर कभी मत जाना यारों
जितना तन उजला उससे ज्यादा ही मन काला है।

चीर कर दिखा चुका अपना हृदय
पर पिशाचों का मन इतने में कहां भरने वाला है।

उन्नति में भभक धधक उठेंगे शोले
मशाल ले जलाएंगे अरमां उदर में जाता निवाला है।

जब तक देख न लें नेस्तनाबूद होते
तानों बानों से उलझा ये रिश्तों का श्याह जाला है।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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